यू ही एक दिन नेट पर सर्च करते हुए मुझे मधुशाला नामक काव्य मिल। पढ़ कर बचपन कि यादें ताज़ा हो गयी । ऐसा लगा जैसे मैं बचपन में वापस पहुंच गया हूँ। बड़ा अच्छा लगा काव्य पढ़ कर। मैं नीचे इस महा काव्य कि कुछ पंक्तियाँ आपकी नज़र कर रह हूँ कृपया मेरे साथ उसका मज़ा लेवें -
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।
क्या पसंद आई आपको यदि हाँ तो पूरी कविता पढ़ने के लिए मुझे क्लीक करें